देहरादून: उत्तराखंड के प्रतिष्ठित आवासीय बालिका विद्यालय वेल्हम गर्ल्स स्कूल ने दशकों से निर्मित समृद्ध इतिहास और गौरवशाली विरासत का सम्मान करते हुए अपने कैंपस में एक नई शुरुआत के रूप में स्कूल म्यूज़ियम का उद्घाटन किया। स्कूल बोर्ड के सदस्यों और विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में इस म्यूज़ियम का लोकार्पण हुआ। यह म्यूज़ियम नसरीन भवन में स्थापित किया गया है, जो एक समय में निज़ाम की संपत्ति थी और 1957 में इसी पर स्कूल की स्थापना हुई थी। नसरीन की वास्तुकला नियो-ट्यूडर शैली में है।
भारत की स्वतंत्रता के दस वर्ष बाद स्थापित हुआ यह विद्यालय, मिस हर्सिलिया सूज़ी ओलिफ़न्ट और मिस ग्रेस मैरी लिनेल की कल्पना का परिणाम था, जिसे वेल्हम बॉयज़ स्कूल के समकक्ष एक लड़कियों का आवासीय स्कूल बनाना था। उस समय जब लड़कियों की शिक्षा सीमित थी और रिहायशी शिक्षा पुरुष केंद्रित मानी जाती थी, तब इस तरह का संस्थान स्थापित करना साहसिक कदम था। दोनों संस्थापकों ने अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया। वेल्हम ने स्वतंत्रता-प्राप्त भारत में महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है — यहां तक कि इसके छात्रों ने भारत-चीन युद्ध के समय भी राष्ट्रहित में योगदान दिया था। यह म्यूज़ियम उसी प्रेरणादायक विरासत का उत्सव है जो आज भी नई पीढ़ियों के नेतृत्व को आकार दे रही है और उस विरासत का सम्मान करता है जिसने भारत में महिला शिक्षा आंदोलन को चुपचाप पोषित किया।
वेल्हम गर्ल्स स्कूल के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के प्रेसिडेंट रोमेश सोबती ने इस अवसर पर कहा, “हम वेल्हम में उस विरासत का उत्सव मनाते हैं जो साहस, प्रतिबद्धता और कठिन परिस्थितियों से संघर्ष की कहानी कहती है। सात दशकों पहले जो चिंगारी जली थी, वह आज शिक्षा, नेतृत्व और उद्देश्यपूर्ण विकास की प्रेरक यात्रा बन चुकी है। यह म्यूज़ियम हमारे गौरवशाली अतीत, जीवंत वर्तमान और उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक है।”
म्यूज़ियम में जिन प्रेरणादायक महिलाओं को स्थान मिला है, उनमें दो प्रमुख पूर्व छात्राएँ भी विशेष रूप से उपस्थित रहीं — नीलम खन्ना (1965 बैच) मुख्य अतिथि रहीं और प्रमीला नज़ीर (पूर्व में चौधरी), जो 1957 की पहली बैच की छात्रा थीं, विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थीं। नीलम खन्ना ने भारत के रचनात्मक, सांस्कृतिक और लक्ज़री हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जबकि प्रमीला नज़ीर वेल्हम की पहली पंजीकृत छात्रा थीं — रोल नंबर 1। इस तरह, साथ में ये पूर्व छात्राएँ वेलहम के शुरुआती दिनों की अग्रणी भावना का प्रतीक बनी।
म्यूज़ियम का उद्घाटन करते हुए नीलम खन्ना ने मिस लिनेल को याद करते हुए कहा कि वे वेल्हम की “आत्मा और पृष्ठभूमि” थीं और “हर कोई उन्हें अपना आदर्श मानता था।” वहीं, प्रमीला नज़ीर ने भावुकता से कहा, “नसरीन हमारे लिए घर से दूर पहला घर था।” उन्होंने म्यूज़ियम फ़ोयर में लिखे शीर्षक Echoes of Eternity को एक उपयुक्त नाम बताया। उन्होंने कहा, “मुझे आशा है कि वेल्हम की परंपराएं, मूल्य और उपलब्धियाँ आने वाले वेल्हमाइट्स को प्रेरित करेंगी और वे इसमें अपने नए अध्याय जोड़ते रहेंगे।”
विद्यालय की प्राचार्या विभा कपूर ने कहा, “वेल्हम सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है; यह एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ सम्पूर्ण विकास का प्रयास है, जिसका उद्देश्य करुणामय नेतृत्व तैयार करना है। हमारी संस्थापक महिलाओं से लेकर आज के शिक्षक और छात्र—सभी के साझा प्रयासों को यह म्यूज़ियम सम्मान देता है। यहीं हम अपने गौरवशाली अतीत को नमन करते हैं और एक मजबूत कल की रूपरेखा तैयार करते हैं।”
हेरिटेज ब्लॉक में स्कूल की ऐतिहासिक यात्रा को संजोया गया है, जहाँ मिस लिनेल और बाद की प्रधानाचार्याओं द्वारा छोड़े गए नोट्स और स्मृतिचिह्न उन मूल्यों और दूरदर्शिता की कहानी कहते हैं जो इस विद्यालय को भारत के अग्रणी आवासीय संस्थानों में से एक के रूप में आगे बढ़ाते रहे हैं।
नसरीन की दीवारें, जिन पर यह म्यूज़ियम बना है, संस्थापकों, पहले बैच की दस छात्राओं और शिक्षकों की स्मृतियों, उद्धरणों और किस्सों से जीवंत हो उठती हैं —प्रिय बजरी की कहानियाँ—जिस पर सभी वेल्हमवासी चलते थे—गुलाबो के प्रति अटूट प्रेम, सामूहिक प्रार्थनाओं की गूंज, मध्यरात्रि भोजों का गुप्त आनंद, विद्यालय के पीछे लीची का बाग, डरावनी कहानियाँ और पीढ़ियों को आकार देने वाले साहसी अभियान, आंतरिक भाग की शोभा बढ़ाते हैं। मध्य हॉल में उत्तर-औपनिवेशिक भारत की स्मृतिचिह्न, नोट्स, सिक्के और अन्य अवशेष रखे गए हैं।
स्कूल के हॉउस उन पक्षियों के नाम पर हैं जो एक समय कैंपस में दिखते थे — बुलबुल, फ्लाईकैचर, हुपो, ओरीयल और वुडपैकर। स्कूल यूनिफॉर्म पर प्यार से बनाए गए ‘टैडपोल्स’, और मिसेज रसेल की नेचर स्टडी की कक्षाओं की कहानियाँ भी इस म्यूज़ियम में जीवन्त रूप में दर्शाई गई हैं।
वेल्हम की स्थायी विरासत ऐसे आत्मनिर्भर, दृढ़संकल्पी और भारतीय संस्कृति में रचे-बसे युवाओं को तैयार करने में निहित है, जो विश्व के लिए खुले हैं। यह म्यूज़ियम, अतीत और वर्तमान की कहानियों को जोड़ते हुए, एक उज्ज्वल भविष्य की राह को रोशन करता है।